Lokpal से भ्रष्टाचार पर अंकुश ,भ्रष्टाचारी जेल जाने को रहे तैयार
Lokpal से भ्रष्टाचार पर अंकुश ,भ्रष्टाचारी जेल जाने को रहे तैयार
Lokpal –भारत में लोकपाल का इतिहास लगभग 60 के दशक के आरम्भ से ही इसकी जरूरत महसूस शुरू हो गयी थी। देश के प्रशासनिक ढाचे में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड से खत्म करने के लिए 05 जनवरी 1966 को मोरार देसाई जी के अध्यक्षता में एक प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया था।
इस आयोग ने अपनी सिफारिश में देश में दो स्तरीय प्रणाली की गठन की वकालत की । इस प्रणाली के तहत भ्रष्टाचार को जड खत्म करने के लिए उसने केन्द्र में एक लोकपाल तथा राज्यो में लोकायुक्तों की स्थापना पर जोर दिया। सरकार ने इस सिफारिश को मानते हुए लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक सन् 1968 में लोक सभा में पेश किया गया और सदन ने 1969 में इस विधियेक को लोक सभा से पारित भी करा लिया लेकिन राज सभा से पारित न हो सका ।
और उसी दौरान लोकसभा के भग हो जोने के कारण यह विधेयक समाप्त हो गया । फिर इस विधेयक को कई सरकारो ने समय समय पर सन् 1971 में फिर 1977 में फिर 1985 में फिर 1989 में फिर 1996, 1998, 2001, में विधेयक को पेश करना पडा लेकिन बार बार की तरह विधेयक में सुधार को लेकर इसे संयुक्त संसदीय समिति तो कभी स्थायी समिति के पास भेजा गया लेकिन यह विधेयक परिस्थतियों वजह कानून का रूप नही ले सका ।
फिर सन् 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सरकार ने फिर इस विधेयक को कानूनी रूप देने के कोशिश की मगर यह न हो सका ।
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इसी बीच अन्ना हजारे ने Lokpal विधेयक को फिर से कानूनी रूप देने के लिए सरकार पर दबाब बनाने के लिए एक आन्दोलन की शुरूआत किया गया जिसमे संतोष हेगडे, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनया गया एक विधेयक जिसे शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि के समर्थन से जनता के विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया था उसे इसकी प्रति को प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसमबर को भेजा गया था।
जन लोकपाल के शक्तियाँ :
- इस कानून के अन्तर्गत केन्द्र में लोकपाल का गठन होगा तो राज्यो में लोकायुक्त का गठन होगाा
Lokpal bill
- यह संस्था सरकार से स्वतंत्र होगी जैसे सुप्रीम कोर्ट तथा निर्वाचन आयोग।
- कोई भी सरकारी अधिकारी तथा नेता की जांच की जा सकेगी।
- Lokpal को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा करने के लिए पूरी शक्ति होगी ।
- यदि किसी नागरकि की कार्य तय समय सीमा के नहीं बनता जैसे पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड या कोई भी अन्य किसी भी प्रकार की शिकायत होने पर यदि अगर आप के इन समस्याओं का निवारण नही करता तो आप लोकपाल के पास शिकायत कर सकते है । जिसे उसे यह काम 01 महीने के अन्दर करना होगा । लोकपाल को इसकी जांच करनी होगी तथा यह सुनावाई एक साल के भीतर ही होगी और दोषियों को 02 साल के भीतर जेल भेज दिया जायएगा।
- भ्रष्टाचारीयों के खिलाफ चलने वाले मुकदमे कई सालो तक नही चलेगी । इसे किसी भी प्रकार की मुकदमे की जांच एक साल के भीतर होगी। और भ्रष्टचार में लिप्त नेताओ, अधिकारीयों या न्यायाधीशों को 02 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
- इसमे अगर कोई भी दोषी पाया जाता और आरोप सिद्ध पाया हो जाता है तो उसके उसकी भरपाई भी वसूली जायेगी ।
- यदि किसी नागरिक का काम करने की तय सीमा में अगर नही किया जाता तो लोकपाल सम्बन्धि अधिकारी पर जुर्माना लगायेगा । और यही जुर्माना शिकायतकर्ता को मुवावजे के रूप में दी जायेगी।
- यदि लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत मिलती है तो उसी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जायेगा ।
- Lokpal के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नगारिको और संवैधानिक संस्थानो के नेताओं द्वारा किया जायेगा इनकी न्युक्ति पारदर्शी तथा जनता के भागीदारी से होगी ।
- सी.वी.सी. विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार विभाग लोकपाल में विलय कर दिया जायगा ।
अन्ना आंदोलन :
मानसून सत्र में सरकार ने एक सरकारी बिल लेकर आयी जो अन्ना हजारे अन्ना हजारे वाला प्रस्तुत जनलोकपाल बिल मे बहुत अन्तर था। इस गतिरोध पर अनना हजारे ने पुन: 16 अगस्त को अनशन पर जाने की बात कही जिसे उन्ने दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया ।आरै उन्हे 7 दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड जेल भेज दिया। जिसे जनता मे काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई और जनता सडको पर उतर आयी और देशव्यापी प्रदशर्न होने लगे । सरकार ने इसे देखते हुए अपना कदम पीछे खीच लिया और अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया मगर अन्ना ने शर्त मानने से इनकार कर दिया ।
जिससे 17 अगस्त तक तिहाड जेल के सामने अन्ना समर्थक लोग हजारो की संख्या में डेरा डाले हुये थे। जिससे अन्ना को दिल्ली पुलिस ने 7 दिनों का अनशन करने को तैयार हुई मगर उन्हे 15 दिनो की अनुमति मिलि और 19 अगस्त से अन्ना रामलीला मैदान मे आनशन जारी रखे ।
इस अनशन मे कहा कि यदि सरकार लोकपाल विधेयक पर संसद पर चर्चा करती है और अगर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वे अनशन समाप्त कर देगे। प्रधामंत्री मनमोहन सिंह ने जारी गतिरोध को तोडने की दिशा में ससंद में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डा जयप्रकाश नारायण सहित अन्य द्वारा पेश विधेयको के साथ जन Lokpal विधेयक पर भी विचार करेगी और उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा।
सरकार द्वारा प्रस्तुत सरकारी लोकपाल विधेयक एवं वही प्रस्तावित जनलोकपाल विधेयक में अन्तर
सरकारी लोकपाल | प्रस्तावित जन लोकपाल (अन्ना हजारे) |
1. सरकारी प्रस्तावित लोकपाल भ्रष्टाचार के मामले पर सीधी कार्यवाही करने का अधिकार उसके पास नही होगी । आम लोगों को सांसदो से सम्बन्धित मामले की शिकायते राज्यसभा के सभापति या लोक सभा अध्यक्ष के पास भेजनी पडेगी। | प्रस्तावित जन लोकपाल में लोकपाल खुद मामले की जांच शुरू कर सकता है इसमे उसे किसी की अनुमति लेने की आवश्यकात नही है। |
2. सरकारी लोकपाल में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है वह जांच के बाद इसे अधिकार प्राप्त संस्था के पास सिफारिश को भेजेगा । मंत्रिमंडल के सदस्य के मामले में प्रधानमंत्री फैसला करेंगे। लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा । नौकरशाहों और जजों के खिलाफ जांच की कोई प्रावधान नहीं है। | प्रस्तावित जन लोकपाल में किसी भी सरकारी अधिकारी के विरूद्ध कार्रवाही कर सकती है । इसके दायरे में प्रधानमंत्री, नेता, अधकारी, न्यायाधीश सभी आयेगे |
3. सरकार प्रस्तावित लोकपाल में लोकपाल की नियुक्ति एक समिति करेगी जिसमे उपराष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, दोनों सदनों के नेता, सदन के विपक्ष के नेता, कानून और गृहमंत्री होगे । | प्रस्तावित जन लोकपाल में लोकपाल की नियुक्ति न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारती मूल के नोबेल एवं मैगासेसे पुरस्कार से सममानित विजेता चयन करेंगे । |
4. सरकारी प्रस्तावित लोकपाल में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी । | प्रस्तावित जन लोकपाल के पास पुलिस की शक्ति भी होगी तथा वह प्राथमिक भी दर्ज करा पायेगा । |
5. सरकारी प्रस्तावित लोकपाल में अगर शिकायतकर्ता की शिकायत झूठी पाये जायेगी तो उस शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है । | प्रस्तावित जन लोकपाल में अगर शिकायतकर्ता ने झूठी शिकायत दर्ज करायी है तो उसके उपर जुर्माना लगाया जायेगा। |
6. 03 सदस्य होगे जो सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे | प्रस्तावित जन लोकपाल में 08 सदस्य होगे एक अध्यक्ष ,चार कानून पृष्टिभूमि से तथा बाकी चार किसी भी क्षेत्र से होगे |
7. सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल की नियुक्ति एक समिति करेगी जिनके सदस्य उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनो सदनो के पक्ष व विपक्ष के नेता तथा कानून एव गृह मंत्री होगे । | प्रस्तावित जन लोकपाल में भारतीय मूल के नोबेल एंव मैगासेसे पुरस्कार से सम्मानित लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, न्यायिक क्षेत्र से सम्बन्धि लोग चुनाव करेगे। |
8. सरकारी द्वारा प्रस्तावित लोकपाल में लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए 06 महीने से 01 साल का समय तय किया गया | प्रस्तावित जन लोकपाल में लोकपाल एक साल के अन्दर जांच की प्रक्रिया पूरी करने के साथ साथ उसी एक साल में अन्दर अदालती कार्यवाही भी पूरी होनी चाहिए । |
9. सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषीयों की सजा 06 से 07 महीनो तक हो सकती है | प्रस्तावित जन लोकपाल में दोषीयों के विरूद्ध सजा कम से कम 05 साल से अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। |
9. सरकारी लोकपाल मे दोषीयों के खिलाफ सजा सिद्ध होने जाने के बाद घोटाले के घन वापिस लेने का कोई प्रावधान नही है | प्रस्तावित जन लोकपाल में दोषियों के खिलाफ सजा सिद्ध हो जोने के बाद कम से कम 05 साल से अधिकतम उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। तथा घोटाले हुई धनराशि की भरपाई का भी प्राविधान है।
अगर यदि लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए तो जनलोकपाल बिल में उसको हटाने का प्रावधान है । |
2013 में पारित हुआ क़ानून
2013 में Lokpal कानून लोक सभा तथा राज्य सभा दोनों से पारित हुआ इसमे लोकसेवको के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ केन्द्र में लोकपाल तथा राज्यो में लोकायुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
देश के पहले Lokpal बने जस्टिस पिनाकी चंद्र घोशा (पीसी घोष)
चयन समिति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष देश के पहले लोकपाल की नाम की सिफारिश की । इस चयन समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई तथा लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन तथा पूर्व अटॉनी जनरल रोहतगी थे जिन्होने इनके नाम की सिफारिश की । इस चयन में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खेडगे ने इस बैठक में भाग नहीं लिया था जो विपक्ष के सदन के नेता थे । सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पीसी घोष देश के पहले लोकपाल बन गए हैं. राष्ट्रपति कार्यालय की ओर से उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की गई ।
पिनाकी चंद्र घोष का जन्म 1952 में हुआ था तथा वे जस्टिस शंभू चंद्र घोश के बेटे है । अपनी कानून की पढाई उन्होने कोलकता से पूरी की तथा 1997 में कोलकता हाई कोर्ट के जज बने। इसके बाद 27 मई 2017 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद से रिटायर हुए । जस्टिस घोष ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फ़ैसले दिये।
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